भारत, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन इतिहास के लिए जाना जाता है, अपने परिदृश्यों में ऐसे खजाने छिपाये हुए है जो इसकी कलात्मक विरासत के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। ऐसा ही एक खजाना है गुफा चित्र (cave paintings in india), एक परंपरा जो प्रसिद्ध अजंता गुफाओं से भी आगे तक फैली हुई है। यह ब्लॉग अजंता, बाघ, बादामी, सित्तनवासल और एलोरा के गुफाओ में पाई जाने वाली मनोरम कल्पना की पड़ताल करता है, जिनमें से प्रत्येक भारत की कलात्मक कथा के बहुरूपदर्शन में योगदान करती है।
Contents
- 1 अजंता की चित्र शैली |Ajanta Cave Paintings In India
- 2 बाघ गुफाओं के चित्र |Bagh Cave Paintings In India
- 3 बादामी के गुफा चित्र |Badami Cave Paintings
- 4 सित्तनवासल के गुफाचित्र |Sittanavasal Cave Paintings
- 5 एलोरा के गुफाचित्र |Ellora Cave Paintings
- 6 एलीफैन्टा के गुफा चित्र |Elephanta Cave Paintings
- 7 जोगीमारा गुफा के चित्र |Jogimara Cave Paintings
- 8 सिगिरिया की गुफा |Sigiriya Cave Paintings
अजंता की चित्र शैली |Ajanta Cave Paintings In India
प्राचीन भारतीय चित्रकला का एक महत्त्वपूर्ण स्थल अजंता, महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। अजंता की खोज सन् 1819 ई. में मद्रास सेना के उन अधिकारियों द्वारा की गयी, जो वहाँ शिकार की खोज में गये थे। अजंता में कुल 30 गुफायें हैं। तीसवीं गुफा में चित्र तो नहीं हैं, परन्तु कुछ दीवारों को काटकर भगवान बुद्ध के जीवन संबंधी दृश्य बनाये गये हैं। कुछ पत्थर की मूर्तियाँ भी हैं।
ये गुफायें दो प्रकार की हैं- (1) चैत्य, तथा (2) विहार । चैत्य गुफा को स्तूप गुफा भी कहते हैं। यह पूजा-अर्चना के लिए होती थी तथा धर्मापदेश यहीं होते थे। 9, 10, 19, 26, 29 संख्या वाली गुफायें चैत्य गुफायें हैं। विहार गुफा में बौद्ध भिक्षुओं का निवास होता था। स्तूप गुफाओं में सबसे बड़ी 29वीं गुफा है। पहली गुफा 120 फीट लम्बी है, जो अति सुन्दर है। वैसे सारी गुफायें चित्रित थीं।
अजंता गुफाओं में 9वीं व 10वीं गुफा सबसे प्राचीन मानी जाती है। 8, 12 व 13वीं गुफा के चित्र अपना अस्तित्व लगभग खो चुके हैं। 8वीं 9वीं तथा 11वीं गुफाओं में कुछ मूर्तियाँ भी हैं। 11वीं व 13वीं गुफा 50 ई. में निर्मित लगती है। छठीं व 7वीं गुफा लगभग 500ई. में निर्मित हुई थी। अब तो केवल 1, 2, 9, 10, 11, 16, 17, 19 या 21वीं गुफा के कुछ चित्र ही बचे हैं। इन सभी में 17वीं गुफा में सबसे अधिक चित्र हैं। 9वीं व 10वीं गुफा के चित्रों को सर्वाधिक प्राचीनतम् माना जाता है।
अजंता के चित्र टेम्परा स्टाइल में बनाये जाते थे। जिस दीवार पर चित्र बनाना होता था, वहाँ के पत्थर को पहले किसी औजार से खुरदरा किया जाता था। उस पर पत्थर का चूरा, गोबर और धान की भूसी मिले गारे का लेप बनाकर चढ़ाया जाता था। इस लेप पर चूने का पतला पलस्तर चढ़ाया जाता था। यह पलस्तर जब कुछ गीला ही रहता था, तब उस पर लाल रंग की रेखाओं से जो भी चित्र बनाना होता, उसका रेखांकन किया जाता था।
तदुपरांत उस पर स्थानीय रंग भरे जाते थे और अंत में काले या भूरे रंग की सीमा रेखायें बनायी जाती थीं। अजंता के चित्रों में जीवन के विभिन्न पहलुओं के दर्शन होते हैं। गाँव का एकांत जीवन, नगरों का विलासमय जीवन, भिखारी, मछुए, युद्धरत सैनिक, शिकारी आदि सभी का चित्रण अजंता की विशेषता है। इन सभी चित्र आकृतियों की पृष्ठभूमि में जीवन का धार्मिक तथा दार्शनिक पहलू दृष्टिगत होता है।
बाघ गुफाओं के चित्र |Bagh Cave Paintings In India
अजंता के बाद गुफा चित्रों की परंपरा बाघ की गुफाओं में दृष्टिगोचर होती है। ये गुफायें मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास धार जिले के अंतर्गत विन्ध्य श्रेणी में विद्यमान हैं। ये सन 1907-08 में प्रकाश में आयीं। ये गुफायें नर्मदा की सहायक नदी के तट पर अवस्थित है। इसी कारण इन गुफाओं को “बाघ की गुफा” कहा जाता है। यहाँ कुल 9 गुफायें हैं।
इनमें पहली गुफा को गृह गुफा कहते हैं। दूसरी गुफा को पाण्डवों की गुफा कहते हैं। इसी गुफा में एक ऐतिहासिक महत्व का महाराज सुबंधु का ताम्रपत्र मिला है। तीसरी गुफा को हाथीखाना कहते हैं। इसमें सुन्दर चित्र बने हुए हैं। इसमें बोधिसत्व के चित्र बने हैं, जिससे यह चैत्यगुफा लगती है। चौथी गुफा रंग महल के नाम से प्रसिद्ध हैं। पाँचवीं गुफा के छतों, दीवारों और स्तम्भों में टेम्परा शैली के चित्र हैं। छोटी गुफा एक 46 फीट का वर्गाकार हाल है। चौथी व पांचवीं गुफा के आगे एक 200 फीट का बरामदा था। शेष तीनों गुफायें नष्ट हो गयी हैं।
इन चित्रों की प्रतिकृतियाँ उतारने वाले प्रथम चित्रकारों में सर्वश्री एस. एन. सरकार, वी. एन. आप्टे, एस. भाण्ड, नंदलाल बोस, श्री ए.वी. भोंसले, वी.वी. जगताप व असित कुमार हालदार के नाम उल्लेखनीय हैं। गूजरी महल में इनकी प्रतिलिपियाँ सुरक्षित हैं।
बाघ की गुफाओं में चौथी गुफा ‘रंग महल’ में ही सबसे अधिक व सुरक्षित चित्र हैं। इस गुफा के द्वार के ऊपर दो चित्र अंकित हैं। पहला चित्र दो स्त्रियों का है, जो एक स्थान पर बैठी हुई हैं। दूसरे दृश्य में चार व्यक्ति बैठे हैं। तीसरा चित्र मनुष्यों के दो दल वाला है। चौथा चित्र गायिकाओं के दो दलों का है। पाँचवें दृश्य में 17 घुड़सवार चित्रित हैं। छठें चित्र में हाथियों का जुलूस दिखाया गया है। कहीं-कहीं कुछ पशु-पक्षी व अन्य अलंकरण दिखाई देते हैं, जो अजंता की शैली के समान है।
बादामी के गुफा चित्र |Badami Cave Paintings
बम्बई के एहोल नामक स्थान के पास बादामी की गुफायें स्थित हैं। यहाँ स्थित कुल चार गुफा मंदिर चालुक्य राजाओं के बनवाये हुए हैं। ये गुफायें शैव धर्म से संबंधित हैं। इनका निर्माण 578 ई. में राजा कीर्ति वर्मन के समय में हुआ था। इनमें एक नटराज शिव का चित्र है, जिसमें वे नृत्य कर रहे हैं। दूसरे चित्र में एक स्त्री किसी की याद में विरहाकुल है। एक चित्र में राजा रानी सिंहासन पर बैठे हैं तथा नृत्य हो रहा है। इन गुफाओं में एक चंवर डुलाती हुई सुन्दर स्त्री बनी है।
यह स्थान मद्रास में तंजौर के पास पुदुकोटा के निकट स्थित है। पल्लव राजा महेन्द्र वर्मन तथा उनके पुत्र नरसिंह वर्मन ने इन गुफाओं का निर्माण 600-650 ई. में करवाया था। ये गुफायें जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। इनमें एक चित्र तालाब का है, जिसमें कमल खिले हुए हैं। स्तंभों पर कमल तथा नर्तकियों चित्रित हैं। यहीं एक अर्द्धनारीश्वर का चित्र है, जिसकी शैली अजंता व बाघ जैसी है। इन गुफाओं के चित्र अजंता व बाघ से मिलते-जुलते हैं।
एलोरा के गुफाचित्र |Ellora Cave Paintings
यह स्थान महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 30 किलोमीटर तथा अजंता से लगभग 97 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ एक पूरी पहाड़ी तराश कर अद्वितीय मंदिरों में बदल दी गयी है। ये मंदिर एक मील तक फैले हुए हैं। यहाँ मंदिरों के तीन समूह हैं। पहला समूह बौद्ध मंदिरों का है। ये मंदिर संख्या में 12 हैं। दूसरा समूह ब्राह्मण धर्म का है, जिसमें 17 मंदिर हैं तथा अंतिम मंदिर जैन मत से सम्बन्धित है, जिसमें 5 मंदिर हैं। प्रसिद्ध कैलाश मंदिर राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने बनवाया था। ये सभी मंदिर चौथी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच निर्मित हुए।
एलीफैन्टा के गुफा चित्र |Elephanta Cave Paintings
यह गुफा बम्बई से दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक टापू पर स्थित है। यह गुफा जहां स्थित है, पहले उस नगरी का नाम धारा नगरी था, परन्तु पुर्तगालियों ने इसका नाम एलीफैन्टा रख दिया, क्योंकि यहाँ एक बहुत बड़े पत्थर की हाथी की मूर्ति थी। अब यह ‘प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम’ बम्बई में रखी है। एलीफैन्टा तक पहुँचने के लिए बम्बई के ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ से मोटर बोट में बैठकर जाना पड़ता है। ‘त्रिमूर्ति’ इस गुफा की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
यहाँ कुल 9 मूर्तियाँ हैं, जो भगवान शंकर के विभिन्न रूपों तथा क्रिया-कलापों को व्यक्त करती हैं। दूसरी मूर्ति ‘पंचमुख परमेश्वर’ की है, जो अद्भुत सौम्यता तथा शान्ति की प्रतीक है। तीसरी भगवान शंकर की अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा है, जो कला और दर्शन के समन्वय का प्रतीक है।
जोगीमारा गुफा के चित्र |Jogimara Cave Paintings
जोगीमारा गुफायें, मध्य प्रदेश के सरगुजा जिले में नर्मदा नदी के उद्गम स्थान अमरकंटक पर स्थित हैं। डॉ. ब्लॉख के मतानुसार इसका निर्माण 300 ई.पू. हुआ था। परन्तु सर जॉन मार्शल के अनुसार इसका समय 1000 ई. पूर्व माना जाता है। जोगीमारा गुफा पर शोध कार्य करने के लिए श्री असित कुमार हालदार तथा क्षेमेन्द्रनाथ गुप्त 1914 ई. में वहाँ गये थे। उनके अनुसार जोगीमारा की गुफा की छत में सात चित्र हैं- इनमें मानवाकृति, मछली एवं हाथी का चित्रण है।
सिगिरिया की गुफा |Sigiriya Cave Paintings
बौद्ध धर्म को विस्तार देने के लिए बौद्ध भिक्षु एवं कलाकार सुदूर पूर्व तथा दक्षिणी देशों की ओर गये। श्रीलंका में भी अजंता की चित्रकला उसी रूप में पहुँची। सिगिरिया में इन बौद्ध कलाकारों ने सुन्दर चित्रों का निर्माण किया। बाद में श्रीलंका की सरकार ने इन चित्रों का संरक्षण किया। यहाँ कुल 6 गुफायें हैं, परन्तु चित्र केवल चार में बचे हैं, जिनमें विशेष चित्र केवल दो गुफाओं में ही हैं, उन्हें विन्सेंट स्मिथ ने ‘ए’ तथा ‘बी’ नाम दिया।